नालंदा विश्वविद्यालय का 800 वर्ष बाद पुनर्जन्म
नालंदा विश्वविद्यालय का 800 वर्ष बाद पुनर्जन्म

एक सितंबर 2014 को प्राचीन और आधुनिक भारत के इतिहास के बीच ज्ञान की कड़ी जुडी. लगभग 800 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय (एनयू) के पुनर्जन्म से यह संभव हो सका है.
उम्मीद तो थी कि इस आयोजन पर अस्थायी परिसर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन नालंदा महाविहार के खंडहर रूप बदल कर जी उठेंगे लेकिन, ऐसा कुछ ख़ास हुआ नहीं.
आयोजन औपचारिक
बिहार की राजधानी पटना से करीब 120 किलोमीटर दक्षिण- उत्तर में राजगीर शहर के अस्थाई विश्वविद्यालय परिसर के सभागार में कुलपति प्रोफेसर गोपा सभरवाल ने कहा कि छात्रों की संख्या कम ज़रूर है, लेकिन क्योंकि इसे एक शोध संस्थान के रूप में विकसित किया जा रहा है, लिहाजा यहाँ अन्य संस्थानों की तरह भीड़ की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.
विश्वविद्यालय में फिलहाल, दो विषयों (स्कूल ऑफ़ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ़ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट) की पढ़ाई की अस्थाई व्यवस्था की गई है और सात शिक्षक नियुक्त किए गए हैं.

2014-15 के पहले सत्र के लिए जापान और भूटान के एक-एक छात्र और भारत के विभिन्न राज्यों के 13 छात्र-छात्राओं ने नामांकन कराया है. शिक्षण शुल्क तीन लाख रुपये सालाना है, लेकिन वर्तमान बैच को फीस में 50 प्रतिशत की छूट दी गई है.
गौरवशाली इतिहास
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान 5वीं सदी में हुई थी. लेकिन, 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया था.
अगर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय नष्ट नहीं किया जाता तो यह विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों इटली की बोलोना (1088), काहिरा की अल अज़हर (972) और ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड (1167) से भी कुछ सदियों पुरानी होती.
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